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अप्प दीपो भव / बिम्बसार 1 / कुमार रवींद्र

बिम्बसार की आँखें
       खोज रहीं सूरज को

अंधा है बन्दीगृह
रात घनी काली है
बाहर है शोर बहुत
घर-घर दीवाली है

रौंद रहा करि कोई
        खिले हुए पंकज को

पुत्र है अजातशत्रु -
वही शत्रु आज हुआ
तड़प रहा साँसों का
पिंजरे में बंद सुआ

पूजा था नृप ने कल
        गौतम के अचरज को

बुद्ध ने कहा था यही -
'शत्रु-मित्र कोई नहीं
मन में क्यों फिर, राजन
विष की धाराएँ बहीं

खुला क्षितिज होने दो
         मन के इस कुंभज को'