राहुल फिर 
नहीं डिगे                                                   
उनका मन शांत हुआ 
देहराग ने उनको 
फिर नहीं अशांत किया 
अमृतरस जो झरता है भीतर 
वही पिया 
कामना 
व्यथाओं ने 
फिर उनको नहीं छुआ 
सबके प्रति 
नेहभाव जागा था एक नया 
अर्हत हो गये शीघ्र 
पालन कर जीवदया 
और मृत्यु 
आई जब 
हुए प्राण-मुक्त सुआ