भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अफसाना -ए- हयात का उनवाँ तुम्हीं तो हो/ अहमद अली 'बर्क़ी' आज़मी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अफसाना -ए- हयात का उनवाँ तुम्हीं तो हो
तारे नफ़स है जिस से ग़ज़लख्वाँ तुम्हीं तो हो
 
रोशन है तुम से शमए शबिस्ताने आरज़ू
मेरे नेशाते रूह का सामाँ तुम्हीं तो हो
 
आबाद तुमसे ख़ान -ए-दिल था मेरा मगर
जिसने किया है अब उसे वीराँ तुम्हीं तो हो
 
कुछ तो बताओ मुझसे कि आख़िर कहाँ हो तुम
नूरे निगाहें दीद -ए- हैराँ तुम्हीं तो हो
 
मैँ देखता हूँ बज़्मे नेगाराँ में हर तरफ
जो है मेरी निगाह से पिनहाँ तुम्हीं तो हो
 
करते हो बात बात में क्यों मुझसे दिल्लगी
जिसने किया है मुझको परीशाँ तुम्हीं तो हो
 
क्योँ ले रहे हो मेरी मोहब्बत का इम्तेहाँ
लूटा है जिसने मेरा दिलो जाँ तुम्हीँ तो हो
 
है मौसमे बहार में बेकैफ ज़िंदगी
मश्शात- ए- उरूसे बहाराँ तुम्हीं तो हो
 
"बर्क़ी" के इंतेज़ार की अब हो गई है हद
उसके तसव्वुरात में रक़साँ तुम्हीं तो हो