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अफ़साना बदल गया तुम नहीं बदले / कमलकांत सक्सेना

अफ़साना बदल गया तुम नहीं बदले।
कि जमाना बदल गया तुम नहीं बदले।

नज़रों से झरने लगे सावनी दिवस
मयखाना मचल गया तुम नहीं बदले।

मेरे सामने है पानी का पहाड़
नज़राना दहल गया तुम नहीं बदले।

मैंने कहा मुहब्बत कीजिये ज़रा
मुस्काना पिघल गया, तुम नहीं बदले।

हो गये यत्न सारे निष्काम जैसे
अनजाना बहल गया, तुम नहीं बदले।

बेगुनाह था मैं, बेगुनाह हूँ मैं
गिड़गिड़ाना विफल गया, तुम नहीं बदले।

छोड़ यादों के दरख़्त जाऊंगा अगर
दीवाना 'कमल' गया, तुम नहीं बदले।