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अफ़सोस है कि हम कूँ दिल-दार भूल जावे / शाह मुबारक 'आबरू'
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अफ़सोस है कि हम कूँ दिल-दार भूल जावे
वो शौक़ वो मोहब्बत वो प्यार भूल जावे.
रुस्तम तेरी अँखियों के आवे अगर मुक़ाबिल
अबरू कूँ देख तेरी तलवार भूल जावे.
आरिज़ के आईने पर तुमना के सब्ज़ ख़त है
तूती अगर जो देखे गुफ़्तार भूल जावे.
क्या शैख़ क्या बरहमन जब आशिक़ी में आवे
तस्बी करे फ़रामुश ज़ुन्नार भूल जावे.
यूँ ‘आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
जब रू-ब-रू हो तेरे गुफ़्तार भूल जावे.