अबकी बार जब मी गयुं घार / अनूप सिंह रावत
अबकी बार जब मी गयुं घार
कुछ सूनु सी लगी मिथे गौं गुठ्यार
खाली - खाली छै मेरी छज्जा तिबार
जब नजर फेरी मिन वार प्वार
तबरी पल्या खोला की बोडी
दिखे ग्यायी मिथे गैल्यो हफार
पूछी मिन किले हे बोडी
छन यु गौं गुठ्यार खाली - खाली
बोडी बोली यनी छन वल्या पल्या छाली
सबकू काम मा साथ देणु वालू
सरया गौं मा एक चतरू ही छायी
यनी बीमारी लगी की वी भी नि रायी
कुड़ी पुन्गुड़ी लोग छोड़ी चलि गेनी
गौं का गौं अब ता रीता ह्वेगेनी
पुन्गुड़ी बांजी अर कुड़ी उजदडा ह्वेगेनी
मल्या खोला का भगतु न भी
अबकी बार झणी बारा कैरी याली
उ भी नौकरी का बान परदेश चलि ग्यायी
बुढया लोग ही रैगेनी अब ब्यटा घार मा
ज्वान बैख सब चलि गेनी परदेश मा
बैठ्या छावा कब आला हम भी सार मा
सूनी ह्वेगेनी ब्यटा जन्दरी उरख्याली
परदेश मा बसी गेनी झणी किले सब उत्तराखंडी
सभ्या मेरा सगी सम्बन्धी कुमाउनी अर गढ़वाली
मिन बोली बोडी चल सब ठीक ह्वे जालु
आली जब यार घार की तब लौटी की आला
जख भी राला सभी एक दिन जरूर आला...
अबकी बार जब मी गयुं घार
कुछ सूनु सी लगी मिथे गौं गुठ्यार
खाली - खाली छै मेरी छज्जा तिबार।