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अबूझ सवालां री दाझ / मोनिका गौड़

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ठा नीं
अैसासां रै कित्तै जुगां पछै
आज म्हैं हूं
अर उरळै आभै
गुधळीजता टिम-टिम तारा है
बरसां-बरस सूं
ठा नीं कांई कैवणो चावै
पढी है म्हैं वंारै मन री
अणमण नैं
साव गूंगो मून
म्हारै अंतस दांई
म्हारी खुसी-बेचैनी-अणमणोपण
अर मुळक
प्रगट्यो
ठा नीं किण-किण रूप
वंारै मून री हांफळ....
टूट नैं कांई पड़तो आभै सूं
खिंडाय जावतो
अणगिण-अबूझ सवालां री दाझ
तारा कदैई कीं बोलै नीं
फगत सुणै
म्हारै दांई
जगबुझ टिमटिम...!