अब्र चाहे, चांद उसकी ज़द में हो
दिन ये चाहे रात अपनी हद में हो
घर की छत से सर अगर टकराए तो
शख़्स को बेहतर है अपने क़द में हो
सोचिए! कश्ती हो जर्जर और वो
तेज़तर तूफ़ान की भी ज़द में हो
आदमी क्यूं ढल गया हैवान में
बात इस पर भी कभी संसद में हो
और कुछ भी तो नहीं फिर सूझता
शे'र कोई जिस घड़ी आमद में हो