एक शून्य से
प्रेम किया है मैंने।
अमूर्तन, जो यहाँ नहीं,
न ही कहीं और है।
यह शाम, वास्तविक नहीं।
आकाश, वास्तविक नहीं।
छत पर चुम्बन, और चुम्बन —
क्या ये
वास्तविक हैं?
बाबुश्का, यह तुम हो
या छाया है कोई
मेरी बाहों में?
आवेग
जो मुझे कस रहा है
रसायन है किस इच्छा का मेरे बिना?
अब,
इस वक़्त,
यहाँ,
मैं वास्तविक नहीं।