भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब ऐसे / प्रभात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने जो मुझसे माँगा मेरी प्यार
मिलने की इच्छा की सूखी घास का घर
वह मैं तुम्हारे लिए बना नहीं पाऊँगा
तुम्हारे लिए मेरे प्यार को अब ऐसे रहना होगा
जैसे किसी अनंत सिलसिले की तरह विशाल खण्डहर में
हवाएँ रहतीं हैं