अब किसी की याद भी / बलबीर सिंह 'रंग'
अब किसी की याद भी तो भूल है मेरे लिये!
विश्व मधुवन में प्रणय की हैं बहुत अमराइयाँ,
गूँजतीं जिनमें सदा अमरत्व की शहनाइयाँ,
पा सका हूँ मैं न कुंजों की सुखद परछाइयाँ,
देख पाया मैं न कलियों की अलस अँगड़ाइयाँ,
फूल का मकरन्द भी तो धूल है मेरे लिये!
अब किसी की याद भी तो भूल है मेरे लिये!
अर्चना करने चला पर याचना मुझको मिली,
प्राप्ति की आराधना में वंचना मुझको मिली,
मैं विगत शैशव के स्वप्नों को दुहाई क्यों न दूँ,
रूप के छविमान वैभव से घृणा मुझको मिली,
आज मेरी ही कहानी शूल है मेरे लिये!
अब किसी की याद भी तो भूल है मेरे लिये!
मैं युगों से रह रहा वैषम्य के संसार में,
मैं युगों से बह रहा भव-सिंधु के मंझधार में,
आंसुओं की वीचियों पर मीत मेरे तैरते,
दूर तट पर गीत मेरे राह रह-रह हेरते,
पर यही मंझधार अब तो कूल है मेरे लिये!
अब किसी की याद भी तो भूल है मेरे लिये!