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अब किसे बनवास दोगे / अध्याय 2 / भाग 3 / शैलेश ज़ैदी

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बांचती हैं यादें एक इतिहास।
सरयू के जल में नहायी अयोध्या की धरती,
होती है जीवन्त आंखों के समक्ष
गूँजती हैं कानों में सौम्य किल्कारियाँ,
ध्वनियाँ बधावों की,
वेदों के मन्त्रों की,
ग्राम-ग्राम, नगर-नगर
गूँजते हैं गीतों के मोहक स्वर,
आठ पहर
आरती उतारती हैं वधुएं रघुनायक की
हरा भरा दीखती है सारा भूमण्डल
काँपने लगे हैं खल
खेतों खलिहानों से उड़ती हैं जीवन की लहरें,
बाँचती हैं यादें एक इतिहास
देखता हूँ मैं कि एक संवेदनशील मन,
आँखों में झूमता है जिसकी,
स्वस्थ जिन्दगियों का सावन
बाँटता है राज्य-कोष से अपार धन राशि
जनता में,
वर्ण और जाति के भेदों से उठकर बहुत ऊपर,
भरता है प्रजा में आत्म-विश्वास
और फैला देता है अपने चेहरे का तेज
आम इनसानों के चेहरे पर