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अब खता होगी न कोई न शरारत होगी / कांतिमोहन 'सोज़'
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ये तसव्वुर करके कि फ़ासीवाद आया तो मुल्क की सूरते-हाल क्या होगी
अब खता होगी न कोई न शरारत होगी ।
हुक्म तामील करें सिर्फ़ ये चाहत होगी ।।
कौन करता है गिला ये भी करम है तेरा
सर को सजदे में झुकाने की इजाज़त होगी ।
तेग़ सीने मैं उतर जाए तो हक़ है उसका
पसलियाँ उफ़ जो करेंगी तो क़यामत होगी ।
सर उड़ा देने की शमशीर जज़ा माँगेगी
घर जला देने पे शोलों की हिमायत होगी ।
सारे करघों पे बुने जाएँगे शफ़्फ़ाफ़ कफ़न
ख़ुदकुशी करने की हर शख़्स को हाजत होगी ।
बर्क़ गिर जाए नशेमन पे तो एहसां होगा
शमआ गुल कर दे तो आँधी की इनायत होगी ।
सोज़ को राह पे लाओ उसे ख़ामोश करो
शायरी उसके लिए बाइसे-शामत होगी ।।