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अब तो जाग / दीनदयाल शर्मा
Kavita Kosh से
कौन बुझाए खुद के भीतर, रहो जलाते आग,
ऐसे नहीं मिटा पाएगा, कोई आपका दाग।
मन की बातें कभी न करते, भीतर रखते नाग,
कैसे बतियाएं हम तुमसे, करते भागमभाग।
कहे चोर को चोरी कर ले, मालिक को कह जाग,
इज्जत सबकी एक सी होती, रहने दो सिर पाग।
धूम मचाले रंग लगा ले, आया है अब फाग,
बेसुरी बातों को छोड़ दे, गा ले मीठा राग।
मन के अँधियारे को मेट दे, क्यों बन बैठा काग,
कब तक सोये रहोगे साथी, उठ जा अब तो जाग।