भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब नदी में जल नहीं है / अश्वघोष
Kavita Kosh से
अब नदी में जल
नहीं है ।
पत्थरों पर
लेटकर ख़ामोश,
बादलों का पढ़ रही अफ़सोस
सत्य है अटकल नहीं है ।
अब नदी में जल
नहीं है ।
दूर, कितने
दूर हैं अब तट,
आती नहीं पदचाप की आहट
पक्षियों की भी, कोई
हलचल नहीं है ।
अब नदी में जल
नहीं है ।