अब बामो-दर का सर्द बदन चाटती है धूप
ज़ीनों को पार कर के कहाँ आ गयी है धूप 
मुमकिन है ये कि भीड़ में 'संज्ञा' का बाप हो 
इक बार ज़ोर से कहो कितनी कड़ी है धूप 
सौ-सौ जतन से उस का तराशा गया बदन 
क़ुव्वत मिली किसी को किसी को मिली है धूप 
ऐसे में ख़ुश्क पत्तों से उम्मीद क्या करें 
क़दमों बड़े हैं साए तो मीलों बड़ी है धूप 
अब तो किसी को आरजू-ए-बालो-पर नहीं 
फिर किस के पर जलाने को पर तोलती है धूप 
माही के ख़ार से वो उलझता है रात भर 
आफ़ाक़ के क़रीब पड़ी केंचुली है धूप 
बस्ती में आ के ताब दिखाए तो क्या हुआ 
जंगल में जुगनुओं का बदन चाटती है धूप 
दरवाज़े सारे शहर के अन्दर से बंद हैं 
अब के अजीब लोगों के पाले पड़ी है धूप