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अब मसर्रत इधर नहीं आती / रंजना वर्मा

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अब मसर्रत इधर नहीं आती
कोई अच्छी ख़बर नहीं आती

चाहे जितना भी हो अँधेरा पर
रात में तो सहर नहीं आती

मंजिलों को क़रीब जो लाये
बस वही रहगुज़र नहीं आती

ख़्वाब कैसे सजायें आँखों मे
नींद जब रात भर नहीं आती

लोग जब हँसना सीख लेते हैं
फिर नज़र चश्मे तर नहीं आती

चेह्रे सब के बुझे बुझे से हैं
ज़िन्दगानी नज़र नहीं आती

काश मिट जाये ग़मों की लानत
वो घड़ी ही मगर नहीं आती