भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब मुझे तय करने दो / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
तुमने हमेशा तय कीं
मेरी सीमाएं
मेरा होना नहीं होना भी
तुमने तय कीं
मेरे अंदर बाहर की
जिंदगी
मेरे तौर तरीके
बातचीत
मेरे दोस्त, मेरा परिवार भी
तय कर दिया तुमने
अब मुझे तय
करने दो
कि तुम्हें क्या
तय करना चाहिए, क्या नहीं...