Last modified on 30 जून 2014, at 17:45

अब हमें टाटा का तोहफ़ा, ख़ुशनुमा मिल जाएगा / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'


अब हमें टाटा का तोहफ़ा, ख़ुशनुमा मिल जाएगा
इक रतन, ख़्वाब-ए-रतन का, दिलरुबा मिल जाएगा

हर जवाँ, बच्चे व बूढ़े, मर्द या ख़ातून को
सैर की ख़ातिर खिलौना, अब बड़ा मिल जाएगा

खिड़कियाँ हैं, कुर्सियां भी, छत भी है, थोड़ी ज़मीं
लाख में, ये भागने वाला क़िला मिल जाएगा

चिलचिलाती धूप हो, या सर्दियों की सुबहो-शाम
शुक्रिया, टाटा हमें, साधन नया मिल जाएगा

हर बड़ी मोटर का मालिक, रश्क़ से देखेगा जब
भीड़ में नेनो को पहले, रास्ता मिल जायेगा

चार पहिया ख़्वाब थे, पर अब नहीं रह जायेंगे
था किसे मालूम ऐसा, रहनुमा मिल जाएगा

भीड़ को, सिग्नल पे आयी देखने नेनो 'रक़ीब'
लालबत्ती का सिपाही, डाँटता मिल जायेगा