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अभी तक / गंगाराम परमार
Kavita Kosh से
प्यार की भी जात है अभी तक
बहुत बड़ा आघात है अभी तक
रौशनी, रौशनी में हुआ, तो
वो बोले, रात है अभी तक
भूख, भेद, भाषा, भगवान तक
कितने सारे सवालात हैं अभी तक
ऊँच-नीच तो रहेगा ही, यहाँ
उनकी बिरादरी में बात है अभी तक
सूरज किसी के बाप का नहीं
हम भी आसमाँ सात हैं अभी तक
न चाहो तो भी, लड़ना पड़ेगा दोस्त
लड़ाई तो उनकी सौग़ात है अभी तक
तुम्हें आदम नहीं मानते वो
दाढ़ी-चोटी की जमात है अभी तक।