भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभी तो शाम है ऐ दिल अभी तो रात बाक़ी है / अनवर जलालपुरी
Kavita Kosh से
अभी तो शाम है ऐ दिल अभी तो रात बाक़ी है
अमीदे वस्ल वो हिजरे यार की सौग़ात बाक़ी है
अभी तो मरहले दारो रसन तक भी नहीं आये
अभी तो बाज़ीये उलफ़त की हर एक मात बाक़ी है
अभी तो उंगलियाँ बस काकुले से खेली हैं
तेरी ज़ुल्फ़ों से कब खेलें ये बात बाक़ी है
अगर ख़ुशबू न निकले मेरे सपनों से तो क्या निकले
मेरे ख़्वाबों में अब भी तुम, तुम्हारी ज़ात बाक़ी है
अभी से नब्ज़े आलम रूक रही है जाने क्यों ‘अनवर’
अभी तो मेरे अफ़साने की सारी रात बाक़ी है