भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभी निहारेगा कोई मुझको / प्रमोद तिवारी
Kavita Kosh से
इसी आस में
जीवन बीतेगा
अभी निहारेगा
कोई मुझको
टूट गये जन्मों के रिश्ते
पल भर में
हँसते ही हँसते
वैसे तो सच है
लेकिन विश्वास नहीं होता
आँखें भर आतीं
जब कोई पास नहीं होता
ज़रा संभालो
दरपन टूटे ना
अभी संवारेगा
कोई मुझको
एक था राजा
एक थी रानी
दोनों बिछुड़े
खतम कहानी
बचपन में इस सुनी कथा का
अर्थ नहीं जाना
किन्तु आज इसमें पाया
अपना ताना बाना
फिर भी पल-पल
मुड़-मुड़ देखा है
अभी पुकारेगा कोई मुझको