अभी बोल उठ्ठेगी, पत्थर कि मूरत
तेरी गर खुदा  से है सच्ची मुहब्बत
नहीं मोल बिकती ,कहीं पर शराफ़त 
झलकती है चेहरों पे, इसकी नज़ाकत 
छुपे राज़  इनमें , न झूठी वकालत
बुजर्गों कि बातों में ,सच्ची अदावत  
सुनाता हूँ  तुमको,  पुरानी कहावत 
शर्मसार  होती   ,हमेशा  जलालत 
बड़ी मेहरबानी , ये हम पर इनायत 
निगाहों से छ्लके , तुम्हारी बगावत
ये मासूम चेहरा, क्यामत-सी आँखे 
मेरी यह  दुआ  है ,रहे तू सलामत 
लिखे शेइर तूने ,लिखे  खूब "आज़र"
ज़रा यह बता दे हैं किसकी बदौलत