अमर्त्य के नाम पत्र / संतलाल करुण
हे मृत्युगायक, मृत्युनायक, मृत्यु-पथगामी समर
तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर।
पाक-भारत की नियंत्रण-रेख पर छल-दंभ-नर्तन
आ छिपे घुसपैठिए चढ़ चोटियों पर बन-विवर्तन
चढ़ चले तुम चोटियों पर शत्रु था संधान साधे
गोलियों के बीच निर्भय बढ़ चले था लक्ष्य आगे
हे पार्वत योद्धा विकटतम, शत्रुहन शेखर शिखर
तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर।
युद्धरत भारत का सयंम देखता था विश्व अपलक
पाक अपने सैनिको के शव से भी करता कपट
धीर विक्रम हिन्द-सैनिक अंत का सम्मान देते
गोलियों खाते उन्हीं की और उनके शव भी ढोते
हे मृत्युदाता, मृत्युभ्राता, मृत्यु-उद्गाता प्रखर
तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर।
मृत्यु का क्षण है अटल वह आज आए या कि कल
कोई बचता है न उससे, उसके मुख जीवन सकल
पर मौत के विकराल मुँह पर पहुँचकर भी न डिगे
तुम कारगिल की चोटियों पर प्राण न्योछावर किए
हे वीर भारतभूमि के, तुम धन्य हो रिपु-गर्वहर
तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर।
वीरता का मान कुछ है, छल–कपट का नाम कुछ है
शक्ति की ज्योतित दिशा से सूर्य का संग्राम कुछ है
कड़कती बिजली चमकती दिखती है बस एक पल
आकाश के सीने में रेखा खींच जाती है चपल
हे कारगिल के कालजेता, प्राणप्रण, मृत–प्राणधर
तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर, तुम हो अमर।