भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अमर वरदान / जी. छिरीङ
Kavita Kosh से
एक्लै हिजो साँझमा,
हेरिरहेथेँ पश्चिम गगनमा
ध्यानस्त वर्षापछि कुनै मेघमाला
कौतुक यस्तो देखेँ;
जोडी हात गरी विषाद्
आँखा भरी आँसू