अम्न का राग / भाग 4 / शमशेर बहादुर सिंह
आज मैंने गोर्की को होरी के आँगन में देखा
और ताज के साए में राजर्षि कुंग को पाया
लिंकन के हाथ में हाथ दिए हुए
और ताल्स्ताय मेरे देहाती यूपियन होंठों से बोल उठा
और अरागों की आँखों में नया इतिहास
मेरे दिल की कहानी की सुर्खी बन गया
मैं जोश की वह मस्ती हूँ जो नेरूदा की भवों से
जाम की तरह टकराती है
वह मेरा नेरुदा जो दुनिया के शांति पोस्ट आफ़िस का
प्यारा और सच्चा क़ासिद
वह मेरा जोश कि दुनिया का मस्त आशिक़
मैं पंत के कुमार छायावादी सावन-भादों की चोट हूँ
हिलोर लेते वर्ष पर
मैं निराला के राम का एक आँसू
जो तीसरे महायुद्ध के कठिन लौह पर्दों को
एटमी सुई-सा पार कर गया पाताल तक
और वहीं उसको रोक दिया
मैं सिर्फ एक महान विजय का इंदीवर जनता की आँख में
जो शांति की पवित्रतम आत्मा है।
पश्चिम मे काले और सफ़ेद फूल हैं और पूरब में पीले और लाल
उत्तर में नीले कई रंग के और हमारे यहाँ चम्पई-साँवले
औऱ दुनिया में हरियाली कहाँ नहीं
जहाँ भी आसमान बादलों से ज़रा भी पोंछे जाते हों
और आज गुलदस्तों मे रंग-रंग के फूल सजे हुए हैं
और आसमान इन खुशियों का आईना है।