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अम्बर में करतब दिखलाते / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
हँसते-गाते
धूम मचाते
अम्बर में करतब दिखलाते।
क्षितिजों के दोनों छोरों पर
इंद्र्धनुष को ताने कसकर,
सिर पर सौ-सौ घड़े संभाले
दौड़ पड़े लो बादल उस पर,
बिजली दोनों
हाथों थामे
अपनी मस्ती में मुसकाते।
कभी खड़े हो जाते रुककर,
कभी देखते सबको झुककर,
दूरी देख काँपने लगते
भय से सबके उर धुक-धुककर,
पैर हवा से
काँप गये गर
गागर से सागर छलकाते।
खेल देखकर सब हर्षाते,
पौधों के आंगन हरियाते,
झरने लगते दौड़ लगाने,
नदियों में पानी भर जाते,
तीन माह तक
करतब दिखला
जाने कहाँ लौटकर जाते।