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अम्मा कि प्यारी बातों को / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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नहीं बहुत दिन अभी हुए हैं, मोबाइल जब नहीं बने थे
लैंडलाइन कहलाने वाले ही, बस टेलीफोन लगे थे।
एक्सचेंज को नंबर देते, कहते इस पर बात कराओ।
उत्तर मिलता 'लाइन व्यस्त है' , रुककर ज़रा देर में आओ।

बाहर आने-जाने वाले, फ़ोन सभी ट्रंक कॉल कहाते।
कभी-कभी तो घंटों-हफ्तों में भी, बात नहीं कर पाते।
अगर बात हो बहुत ज़रूरी, तो अर्जेंट फ़ोन लगवाते।
बात फटाफट करने वाले, फ़ोन लाइटनिंग कॉल कहाते।

लगा लाइटनिंग कॉल यदि तो, पैसा आठ गुना लगता था।
टेलीफोन लगाने वाले का चेहरा उतरा दिखता था।
किंतु हाय अब हर हाथों में, घर-घर में भी मोबाइल हैं।
बूढ़े-बच्चे-युवक सभी अब मोबाइलजी के कायल हैं।

पलभर में ही बात जगत के कोने-कोने से हो जाती।
फोन लगाने-सुनने वाले की फोटो भी अब दिख जाती।

जब पढ़ते थे आठ दिनों में, अम्मा के थे ख़त आ पाते।
काश! तभी मोबाइल होते, हम उनसे हर दिन बतियाते।
ये सब साधन पहले होते, अम्मा वाला टेप लगाते।
अम्मा कि प्यारी बातों को काश! आज हम फिर सुन पाते।