भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अयोध्या / विजय राठौर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोहे के घने सीख़चों के बीच
बड़ी साँसत में हैं राम!

कारसेवकों की कारगुज़ारियों और
साधुओं के असाध्य प्रपंच में
डूब जाती है उनकी कारुणिक चीख़

राजनीतिक चीत्कारों के शोर में
कौन सुनेगा उनका आर्त स्वर

ठीक उसी तरह जैसे, कोमल-कांत नारियाँ
झोंक दी जाती हैं धधकती आग में
सती में तब्दील करने

भजनों की कर्कश आवाज़ों के मध्य
कोई नहीं सुनता
मर्यादा पुरुषोत्तम का आर्तनाद
कोई नहीं सुनता!