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अरण्यानी / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
रात गहराते ही
करौंदी की अरण्यानी
महामोद अपना
लुटाने लगी
आकुल उच्छवास से
आमोद यह
अरण्यानी लाँघ कर
पूरब, पच्छिम, उत्तर, दक्खिन तक
पसरा
आकाश से बोली अरण्यानी
देखो, जितने तुम्हारे पास तारे हैं
मेरे पास फूल हैं
मेरे इन फूलों की भाषा सुवास है
उन का कोलाहल सुगंधित है
वन्यमृग मेरे पास आते हैं
दीर्घ साँस लेते हैं
और
खड़े रहते हैं