भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरमान / आरसी चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँख मुलमुलाते बदसूरत बच्चों के
खिलखिलाने से
जान सकते हैं
उनकी माँओं की
सारी अनिवर्चनीय घटनाएँ
जो पीठ पर बन्धी
गठरी में
पड़े रहते हैं
परिचय-पत्र की तरह

पहने रहतीं
पेवन सटी कनातें
भय
दहशत
पैदा कर
ज़बरदस्ती
रख दिया जाता
सिर पर गेरूड़ी-सा मुकुट
एक संस्कार के तहत

जिनका नहीं होता जिक्र
इतिहास के पन्नों में
किन्हीं रानियों या राजकुमारियों
की तरह
सीख लेती सजाना
कौड़ी के लिए
ईंटों को
गेरूड़ी पर

परतदार चट्टानों की तरह
तपती रहतीं
चिलचिलाती धूप में
गर्म तवे पर
तले हुए पापड़ की तरह
जो
सूरज सरकने के साथ ही
चली जातीं अपने गन्तव्य
रात की गोंद में

सोखते रहते
इनके प्रतिरोधी झँवाए भासुर चेहरे
पर्त दर पर्त गँदुनुमें स्याह रोशनाई को
बिखर जाते
इनके अरमान

उपल चिंदीयों और
झंझावात में आए
तूफानी झोंको से
उजड़े हुए छप्परों व
भिहिलाए दरख़्तों की तरह।