भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरे सायबा खेलणऽ गई गनागौर / निमाड़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अरे सायबा खेलणऽ गई गनागौर,
अबोलो क्यों लियो जी महाराज।।
अरे सायबा, अबोलो देवर-जेठ,
सायबजी सी ना, रहवा जी महाराज।।
अरे सायबा, पड़ी गेई रेशम गांठ,
टूटऽ रे पण ना छूटऽ जी महाराज।।
अरे सायबा, खाटो दूा अरू दही,
फाट्यो रे मन ना जुड़ जी महाराज।।
अरे सायबा, खेलणऽ गई गनागौर,
अबोलो क्यों लियो जी महाराज।।