भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अर्थतन्त्रक चक्रव्यूह / राजकमल चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सभ पुरुष शिखण्डी
सभी स्त्री रासक राधा
सभक मोनमे धनुष तानिक’ बैसल
रक्त-पियासल व्याधा
कत’ जाउ? की करू??
रावण बनि ककरा सीताकेँ हरू?
सभ पुरुष शिखण्डी

सभ स्त्री रासक विकल राधा
कत’ जाउ? की करू?
रावण बनि ककरा सीताकेँ हरू?
सभ पुरुष शिखण्डी

सभ स्त्री रासक विकल राधा
कत’ जाउ? की करू?
चक्रव्यूहमे ककरो भरोस नहि करू
रे अभिमन्यु-मोन,
छोड़ि देश ई चलू बोन

सभ पुरुष शिखण्डी
सभ स्त्री राधा
सभक मोनमे धनुष तानिक बैसल
रक्त-पियासल व्याधा।

(मिथिला मिहिर: 29.11.64)