अर्थयुग / कालीकान्त झा ‘बूच’
जकरा तर रतन अछि ढेरी
ओकरा माँथ कंचनक बड़ेरी
ताहि घरक अन्नक किछु कण लय
कोटि कोटि भरि रहल अगत्या
अग्रज कयलनि अनुजक हत्या
हरित क्रांतिक हर चलयलनि
विश्व शांतिक घर बनौलनि
देखि रहल छी आई सबेरे
तनिके चार गिद्ध बैसल छनि
लहलह फाड़ पेट पैसल छनि
जे मरि मरि भरि देल बखारी
बीकि गेल अछि तनिक घरारी
लगा रहल चाननक गाछ जे
तकरे शवक लेल नहि काठी
दुर्लभ आंच सस्त खोरनाठी
बैसल जे आखेट क' रहल
जे चलि रहल अंमेट भ' रहल
सूतल सूतल जकरि गेल से
थाकल सं तन जता रहल अछि
गाँथल आरो गथा रहल अछि
घूमि घूमि क' छानल रन वन
आनल सुमन सजाओल रन वन
तकरे लग तरुओ फटाह ई
पथक शूल पद चुभुकि रहल अछि
शोणित सगरो भुभुकि रहल अछि
जे विकासक कुण्ड बनौलक
कल्याणक शाकल मंगबौलक
से श्रमदानक हव्यक संग संग
दुनु हाथक श्रुवा जरौलक
ऊपर सं नैनों फोरबौलक
नहि अवकाश कहा धरि कहबह
की जीवन भरि मरिते रहबह
देखह जर्जर शैल शिखर सं
धीपल पाथर चटकि गेल अछि
वज्रपात भ' छिटकि गेल अछि