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अर्थशाला / भूमिका / केशव कल्पान्त

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डॉ. केशव ‘कल्पान्त’ द्वारा रचित एडम स्मिथ से जे. के. मेहता तक अर्थशास्त्रीय परिभाषाओं का पद्यानुबन्ध्न ‘अर्थशाला’ एक अनूठी काव्य प्रस्तुति है। शायद विश्व की यह प्रथम अर्थशास्त्रीय काव्य कृति है।

प्रारम्भ से ही डॉ. केशव का रुझान काव्य सृजन की ओर रहा है जिसके परिणामस्वरूप इस पुस्तक की रचना हुई। उनकी इस प्रस्तुति में अर्थशास्त्र विषय से सम्बन्ध्ति परिभाषाओं के सरल प्रतिपादन और उनका मौलिक चिन्तन स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। इस पुस्तक की महत्ता और उपयोगिता अर्थशास्त्र के छात्रों को अर्थशास्त्र की परिभाषाओं के प्रारम्भिक ज्ञान के रूप में अवश्य होगी जिसमें विभिन्न परिभाषाओं को सरल एवं सहज रूप में अभिव्यक्त किया गया है।

‘अर्थशाला’ का गहन अवलोकन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि रचनाकार ने पृथक-पृथक रूप में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ, मार्शल, रौबिन्स तथा जे. के. मेहता की परिभाषाओं के विचारों को हिन्दी एवं अंग्रेजी में पद्यानुवाद करके जटिल विचारों को बड़े सरल रूप में प्रस्तुत किया है जिससे अर्थशास्त्र के छात्र अवश्य लाभान्वित होंगे।

अर्थशास्त्र की प्रथम वैज्ञानिक परिभाषा एडम स्मिथ द्वारा दी गई जिसके कारण उन्हें ‘अर्थशास्त्र का जनक’ की पदवी दी गई। इस सन्दर्भ में रचनाकार कहता है -

सर्वप्रथम एडम स्मिथ ने ही,
अति वैज्ञानिक रूप दिखाया।
इसलिये उनको ही सबने
अर्थशास्त्र का ‘जनक’ बताया।

इसी प्रकार एडम स्मिथ की परिभाषा के केन्द्रीय बिन्दु ‘धन’की अभिव्यक्ति करते हुए कवि कहता है -

एडम स्मिथ ने ही अर्थशास्त्र को,
‘धन’ का नव विज्ञान बताया।
मानव के भौतिक जीवन में,
‘धन’ को ही ‘साध्य’ बताया।

भौतिक कल्याण विज्ञान के क्षेत्र में ‘धन’ की अपेक्षा मानव कल्याण पर अधिक बल दिया गया है। इस श्रेणी में महत्वपूर्ण परिभाषा प्रो. एलफ़्रेड मार्शल द्वारा दी गई है, जिसके भावों को काव्य रूप में प्रस्तुत करते हुए कवि ने बड़ी स्पष्टता के साथ व्यक्त किया है -

वैयक्तिक-सामाजिक ढंग में,
क्रिया को जाँचा जाता है।
भौतिक सुख उपलब्ध हेतु ही,
तथ्यों को आँका जाता है।

एक ओर तो अर्थशास्त्र में,
‘धन’ का ही मंथन होता है।
मुख्य रूप से लेकिन मानव,
सुख पर ही चिंतन होता है।

लेकिन मार्शल की परिभाषा भी दोषमुक्त नहीं है। अनेक विद्वानों ने इसके विभिन्न पहलुओं पर आलोचना की है। मार्शल की परिभाषा के आलोचनात्मक स्वरूप को रचनाकार बड़ी दृढ़ता के साथ व्यक्त करते हुए लिखता है -

उचित नहीं उद्देश्य एक बस,
मानव की कल्याण साधना।
द्रव्य तराजू लिए हाथ में,
मानव का कल्याण आँकना।

अर्थशास्त्र को आधुनिक स्वरूप प्रदान करने में प्रो. रौबिन्स ने अर्थशास्त्र की परिभाषा के क्षेत्र में एक क्रांति उत्पन्न कर दी। उन्होंने प्रचलित परिभाषाओं का खंडन किया और एक नूतन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया -

इच्छाएँ अनन्त है साथी,
लेकिन साधन तो हैं सीमित।
साधन की तुलना में रहती,
है आवश्यकताएँ असीमित।

जीवन क्रम में कदम-कदम पर,
‘निर्णय’ के अवसर आते हैं।
‘मापदण्ड रौबिन्स’ इसी से,
अर्थ क्रिया का पफल पाते हैं।

‘अर्थशाला’ के अन्तिम भाग में कवि ने भारतीय दर्शन पर आधारित भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. जे. के. मेहता के विचारों को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है जिसको रौबिन्स की परिभाषा पर एक सुधर माना जा सकता है। भारतीय संस्कृति और परम्परा पर आधरित ‘सादा जीवन-उच्च विचार’ के आदर्श को प्रो. मेहता ने केन्द्र बिन्दु मानकर अर्थशास्त्र की जो परिभाषा दी है, उसका सजीव वर्णन कवि ने बड़े ही सहज एवं सरल ढंग से किया है -

इच्छा के ही जनित कष्ट से,
मानव दुःख भोग करता है।
सरल, सुखद, निस्पृहता तज कर,
दिग्भ्रम में भटका करता है।

चिर-सुख चिर-आनन्द हेतु ही,
इच्छाओं का दमन करो तुम।
संतोषी ही परम सुखी है,
जीवन का अवलम्ब ध्रो तुम।

इस काव्य कृति में डॉ. केशव ‘कल्पान्त’ ने अपनी काव्य प्रतिभा से अर्थशास्त्र की परिभाषाओं को आधर बनाकर जिस तरह काव्यत्व की सृष्टि की है, वह नितान्त सराहनीय है। डॉ. कल्पान्त मेरे शिष्य रहे हैं इसलिये मेरा दुलार उनके काव्य पथ पर पाथेय बनकर उनके साथ रहेगा। डॉ. कल्पान्त मेरे विषय-विभागी साथी एवं सहयोगी भी रहे हैं इसलिए मेरा भ्रातृ-स्नेह काव्य के दुर्गम पथ पर प्रदीप की भाँति तिल-तिल करके स्वयं प्रज्ज्वलित होकर भी उनको प्रति पग प्रकाश प्रदान करेगा। डॉ. कल्पान्त कविता के क्षेत्रा में नित नई काव्य सृष्टि करते रहें, यही मेरा आशीर्वाद है!

डॉ. प्रताप चन्द्र गुप्त
पूर्व कुलपति
चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ
उ.प्र., भारत