भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अर्से के बाद आज इधर से उधर गया / श्याम कश्यप बेचैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अर्से के बाद आज इधर से उधर गया
अच्छा हुआ जो बाढ़ का पानी उतर गया

पीने चला नदी को, हिमाक़त तो देखिए
कच्चा घड़ा पसीज के फूटा, बिखर गया

अंदाज़ फ़ासलों के यक़ीं में सिमट गए
आँखों में जैसे मील का पत्थर उभर गया

क्या बात है यहाँ पे पनपता नहीं है कुछ
शायद किसी दरख़्त का साया पसर गया

अच्छा हुआ सुखों को लगाया गले नहीं
तपकर दुखों की आँच में कुछ तो निखर गया

ग़र्दो-गुबार ज़ेहन में छाए हैं अब तलक
सँकरी गली से भीड़ का रेला गुज़र गया