भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अलग-अलग दिखते हैं / रसूल हमज़ातफ़ / साबिर सिद्दीक़ी
Kavita Kosh से
अलग-अलग दिखते हैं शहर सब
अलग हैं लोग और घर, स्मारक ।
एक समान होते हैं सदा, बस,
सारे कवि, विद्यार्थी, बालक ।
कहीं भी हों दुनिया में चाहे
मुझे हैं प्यारे इसी वजह से
मेरे देशवासी हों मानो
सारे कवि, विद्यार्थी, बच्चे ।
रूसी भाषा से अनुवाद : साबिर सिद्दीक़ी