भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलविदा के लिए / सूरज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलविदा के लिए उठते हैं हाथ
थामने हवा में बाक़ी बची देह-गन्ध
नमक के कर्ज़दार बनाते पसीने और
याद से भींगे होठों के चूम
(या उनकी भी याद ही)

अलविदा के लिए
तुमसे भी जरूरी हों कई काम
(?)
झूठ है सफ़ेद जो बोले जाने हैं
यादें चींटियों की कतार से लम्बी
भूलना जिन्हे जीवन-लक्ष्य
होगा एकसूत्रीय

वापसी की रूखी धुन शामिल होती
हो अलविदा में तो आता है रंग
आती है गूँजती पुकार

सोमवार को धकेल
आने को आतुर रहता है
मेरे जीवन का हर मंगलवार
सारे बुध करते रहते हैं मंगल के
बीतने का बोझिल इंतज़ार

अलविदा, अलविदा

डोलते हाथों और काँपती उँगलियों से पहले
अलविदा के वक़्त चाहिए एक मनुष्य
जीवन में शामिल
जिसकी आँखों में बचे रहे मेरे हाथ
बचे रहे कुछ सिलसिले जो उसी से
सम्भव हुए
बचा रहूँ मैं
इंसान की तरह