भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलस्योनी / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
अपने सेईख के लिए पुकार मत कर, अलस्योनी!
तेरी पुकार से सागर की लहरें थम जाएँगी
और तब? सूरज उगेगा, तारे चमकेंगे,
कर्णधार अपने पथ पहचानते रहेंगे-

पर कितने द्वीपों में कितनी विरहिनियाँ सहम जाएँगी!
सागर कुछ रखता नहीं :
कुछ बदल देता है,
कुछ बाँट-बिखेर देता है,

और कुछ (सदा उपेक्षा से नहीं,
कभी करुणा से भी)
किनारे की सिकता को फेर देता है।
कहाँ है सेईख? उसी का स्वर तो

हवाओं में गाता था!
कितनी चट्टानों की कितनी खोहों-कन्दराओं से
कितनी स्वर-लहरियाँ उपजाता था!
तुम उसे न पुकारो, अलस्योनी,

हवाएँ ही उसे टेरेंगी, खोज लाएँगी
हर कन्दरा में गुहारेंगी
सागर की हर कोख को बुहारेंगी
और जब पाएँगी घेरेंगी

और भोर की लजीली ललाई में
तुम एक पहुँचा जाएँगी!
पुकार मत करो, अलस्योनी!
सागर की लहरें ठिठक जाएँगी

और तुम्हारी-सी अनगिन विरहिनियाँ
राह देखती थक जाएँगी
कि यह कैसी हुई अनहोनी
भोर में पुकार मत करो, अलस्योनी!

अक्टूबर, 1969

इयोलस की कन्या अलस्योनी के पति के सेईख के तूफान में डूब जाने पर अलस्योनी ने समुद्र में कूद कर प्राण दे दिये। देवताओं ने करुणावश दोनों को जलपक्षी बना दिया। इन पक्षियों की मिलन-ऋतु में सागर पर निर्वात सन्नाटा छा जाता है।