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अले, छुबह हो गई! / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
अले, छुबह हो गई!
आँगन बुहाल लूँ,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।
कपले ये धूल भले
मैले हैं यहाँ पले,
ताय भी बनाना है,
पानी भी लाना है,
पप्पू की छट्ट फटी दो ताँके दाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।
कलना है दूध गलम,
फिल लाऊँ तोछ्त नलम,
झट छे इछतोव जला
बलतन फिल एक चढ़ा
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।
आ गया ‘पलाग’ नया,
काम छभी भूल गया,
जल्दी में क्या कल लूँ,
तुपके छे अब भग लूँ,
छंपादक दादा के नये हाल-चाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।