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अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इंसान के बस का काम नहीं / जिगर मुरादाबादी

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अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इन्सान के बस का काम नहीं
फ़ैज़ाने-मोहब्बत<ref>प्रेम की उदारता</ref> आम सही, इर्फ़ाने-मोहब्बत<ref>प्रेम की पहचान</ref> आम नहीं

ये तूने कहा क्या ऐ नादाँ फ़ैयाज़ी-ए-क़ुदरत<ref>प्रकृति की उदारता</ref> आम नहीं
तू फ़िक्रो-नज़र <ref>चिंतन और परख</ref>तो पैदाकर, क्या चीज़ है जो इनआम<ref>पुरस्कार</ref> नहीं

यारब ये मुकामे-इश्क़ है क्या गो दीदा-ओ-दिल <ref> आँखें और दिल </ref>नाकाम नहीं
तस्कीन<ref>चैन</ref> है और तस्कीन नहीं आराम है और आराम नहीं

आना है जो बज़्मे-जानाँ<ref>प्रेयसी की महफ़िल</ref> में पिन्दारे-ख़ुदी<ref> अहंकार</ref> को तोड़ के आ
ऐ होशो-ख़िरद के दीवाने याँ होशो-ख़िरद<ref>बुद्धि ,अक़्ल</ref> का काम नहीं

इश्क़ और गवारा ख़ुद कर ले बेशर्त शिकस्ते-फ़ाश<ref>पराजय</ref> अपनी
दिल की भी कुछ उनके साज़िश है तन्हा ये नज़र का काम नहीं

सब जिसको असीरी<ref>क़ैद</ref> कहते हैं वो तो है असीरी ही लेकिन
वो कौन-सी आज़ादी है जहाँ, जो आप ख़ुद अपना दाम<ref>जाल</ref> नहीं

शब्दार्थ
<references/>