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अवतरण / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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”सिद्वानां कपिलः -“ गीतोक्त कपिल नामहि विन्यस्त
कपिलवस्तु बस्ती बसइत छल हिमालयक निकटस्थ
विक्रम - पूर्व पंचशत सत्सर इतिहासक छल काल
सूर्यवंश शाखाक राजधानी ओ विभव विशाल।।1।।
शुद्धोदन राजाक प्रशासन ईति-भीतिसँ दूर
रानी माया देवी अन्तःपुर ममतासँ पूर
यज्ञ जाप चलइत छल श्रुति- मत, स्मृति - मत शासननीति
कला-कौशलक सन्धानी माया रानी शुचि रीति।।2।।
वयस वसन्त बितल जाइछ नहि कोर रसाल फुलाय
सन्तति कोकिल कूक न सुनलनि, हूक हृदय अधिकाय
पंडित - पुरहित साधु - संत कबुला - मनताक उपाय
कयलनि कत व्रत तीर्थ अन्त सपनामे देल देखाय।।3।।
पसनासीन क्यौ ज्योति - पुरुष छथि ध्यानहि लीन
निकसि प्रभा रेखा रानी - मुख प्रविश उदर कय पीन
चौंकि उठलि माया कपितकाया पतिदेव हकारि
कहल स्वप्न सुनि विस्मित सस्मित भूपति हृदय विचारि।।4।।
समय पाबि पुनि गर्भ - खानिसँ सन्तति - रत्न अमोल
प्रकट, निकट ओ दूर सभक मन जगमग हर्ष हिलोल
दम्पतीक पूरल मनोरथहु अर्थ सिद्ध जे भेल
नाम पड़ल सिद्धार्थ गोतमहु न्याय प्रसिद्धिक लेल।।5।।