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अवषेशों से घिन्नाती / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
ठण्डी हवा में टहलते
कभी जलती आग पर हाथ ताने
घरों के बाहर मर्द
दुनिया भर की मुश्किलों पर
हलकान होते हैं
***
भीतर औरतें
रात का खाना पकातीं
सुबह के नाश्ते की तैयारी
और खाने वालों की
इच्छा / अनिच्छा दोहराते
गुनगुनाती हैं
बहस पर चौंकती
तो ठण्डा-गर्म परोसते
सेंध लगातीं
लौटकर झाड़तीं हाथ
धो लेतीं हाथ
ढाँपने की कोशिश करती
नाक पल्लू से
जीवित मृत बामियों के
अवशेषों से घिन्नातीं