सुन रे ओ अवसादी मन!
बहुत नहीं तेरा जीवन ।
हिम गलेगा निश्चय मानो,
मौन भी टूटेगा,
असंवादी जीवन का पहरा
कभी तो छूटेगा।
चुप्पी का है
कोहरा छाया
कुछ नहीं सूझे
मन भरमाया ।
आशा का मन में ये उजाला
किरनें बन फूटेगा।
हिम गलेगा निश्चय मानो,
मौन भी रूठेगा ।