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अव्यक्त भय / जया पाठक श्रीनिवासन

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क्या वह करेगा ऐसा
मेरे साथ?
मैं नहीं जानती
क्यों मेरी देह
मुझ से ज्यादा नज़र आती है उसे
मैं नहीं जानती -
कब उसकी भूख उसके इंसान पर
ज्यादा हावी हो जाएगी
नहीं जानती - तब देह के ज़ख्म ज्यादा दुखेंगे
या आत्मा के आघात
 
मैं नहीं जानती - जब मुझे सड़क के किनारे
या किसी गली से
उठाया जायेगा
तो लोग मेरी अधनंगी अवस्था पर
ज्यादा चर्चा करेंगे
टीवी पर, अखबारों में..
या मेरी देह-आत्मा पर मरहम लगाने की सोचेंगे
 
तीन में से एक स्त्री
शिकार होती है कभी न कभी
बलात्कार का
या बलात्कार की कोशिश का
मैं नहीं जानती
मैं उन अभागी स्त्रियों में हूँ कि नहीं
इसलिए डरती हूँ हरदम
किस से बात न करूँ
कहाँ न जाऊं
कितना छुपूँ?
मैं नहीं, यह प्रश्न मेरे जीवन को
रूप-रेखा-आकार देते हैं
क्या वह कोई परिचित होगा
या अपरिचित कोई
वह कौन सी जगह होगी
जहाँ ऐसा जघन्य होगा
क्या मेरा भाई
कोई पुत्र
या पति
सुन पायेगा मेरी पुकार
क्या मैं अकेले
जूझती हार जाऊँगी
और फिर झेलूंगी जीवन भर
एक घिनौनी सडांध को
जो उसकी देह से उठकर
मेरे मन में समा गयी
हमेशा के लिए.