अश्क़ पलकों पे फिर सजाऊं क्या ? 
फिर मुहब्बत के गीत गाऊं  क्या  ?
दिल ही जब बुझ गया तो ऐ शब ए ग़म
आँधियों में दिये जलाऊं क्या ?
आफ़तें हैं तो ज़िन्दगी भी है 
आफ़तों से निजात पाऊं क्या ?
राज़दार ए अलम, शरीक ए ग़म 
दर ओ दीवार को बनाऊं क्या ?
तीरह ओ तार है मेरी दुनिया
मेहर ओ माह का फ़रेब खाऊं क्या ?
लाख परदे , हज़ार चहरे हैं 
ऐ " ज़िया " अब नज़र हटाऊं क्या ?