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असफल हों या सफल हों, पर आस मर न जाये / डी.एम.मिश्र

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असफल हों या सफल हों, पर आस मर न जाये
बेशक हों तृप्त लेकिन यह प्यास मर न जाये।

लाखों हैं फूल खिलते, लाखों हैं रोज़ झरते
यह चक्र है नियति का मधुमास मर न जाये।

फ़ितरत है आदमी की छूना बुलंदियों को
इतना ख़याल रखना एहसास मर न जाये।

दुनिया का यह चलन है, दुनिया चलेगी यूँ ही
धोखे हज़ार हों पर, विश्वास मर न जाये।

क्या टूटने के डर से बनते नहीं खिलौने
हम तों मरें हमारा इतिहास मर न जाये।