भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असफल हों या सफल हों, पर आस मर न जाये / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
असफल हों या सफल हों, पर आस मर न जाये
बेशक हों तृप्त लेकिन यह प्यास मर न जाये
लाखों हैं फूल खिलते, लाखों हैं रोज़ झरते
यह चक्र है नियति का मधुमास मर न जाये
फ़ितरत है आदमी की छूना बुलंदियों को
इतना ख़याल रखना एहसास मर न जाये
दुनिया का यह चलन है, दुनिया चलेगी यूँ ही
धोखे हज़ार हों पर , विश्वास मर न जाये
क्या टूटने के डर से बनते नहीं खिलौने
हम तों मरें हमारा इतिहास मर न जाये