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असमर्थ रही भाषा / रश्मि भारद्वाज
Kavita Kosh से
नाम देना ज़रूरी था
ज़रूरी था तय कर देना एक पहचान
गढ़ लेना एक परिभाषा
लेकिन चीज़ें छूटती रहीं नामों की क़ैद से
असमर्थ रही भाषा
असीमित हो गए अर्थ
खुला आकाश नज़र आना बन्द हो गया
हरी धरती एक विशेषण ज़्यादा रह गई
केसरिया और लाल
सिर्फ़ रंग नहीं रहे
धर्म, सत्ता, शक्ति, प्रेम
हर किसी ने ख़ुद को ख़ारिज़ कर लिया
तय किए गए शब्दकोश से
अब जबकि इंसान भी थोड़े से कम इंसान रह गए हैं
और जानवर तब भी जानवर ही कहलाते हैं
हमें ज़रूरत है कुछ नए नामों की