भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असर-2 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हंसे नें
हंसनी सें कहलकै
आदमी के रीढ़ में
भैर गेलै विष ऐत्ती कि
आबेॅ आदमियों भी साँपे नांखि
रंेगेॅ लागलै/टेढ़ोॅ-मेढ़ोॅ।